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सूर्यवंशी समाज का शिक्षा पर चर्चा कार्यक्रम का आयोजन, समाज का ऐतिहासिक पहल. डॉक्टर गिरिराज

*सूर्यवंशी समाज की ऐतिहासिक पहल: सर्वसमावेशी विश्वविद्यालय की स्थापना की परिकल्पना…*

बिलासपुर, 07 जून 2025।
आज सूर्यवंशी समाज के तत्वावधान में शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाने की दिशा में विचार-विमर्श हुआ। समाज के वरिष्ठजन, बुद्धिजीवी, युवाओं और शिक्षा-प्रेमियों की उपस्थिति में एक विशेष बैठक आयोजित की गई, जिसमें “सर्वसमावेशी विश्वविद्यालय” की परिकल्पना पर गंभीर चर्चा की गई।

बैठक की अध्यक्षता करते हुए समाज के प्रखर विचारक डॉ. गिरिराज गढ़ेवाल ने कहा, “हमारे समाज की सबसे बड़ी पूंजी शिक्षा है। बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि ‘शिक्षा शेरनी का दूध है’, और अब समय आ गया है कि हम इस विचार को जमीन पर उतारें।” उन्होंने बताया कि यह विश्वविद्यालय न केवल सूर्यवंशी समाज के लिए, बल्कि सभी जाति, धर्म और वर्ग के विद्यार्थियों के लिए समर्पित होगा।

सर्वजनहितकारी शिक्षा प्रणाली: प्रस्तावित विश्वविद्यालय में हर वर्ग, धर्म और जाति के छात्रों को बिना भेदभाव के प्रवेश दिया जाएगा।

गुणवत्ता और वैश्विक पहचान: इसका उद्देश्य एक ऐसा शैक्षणिक वातावरण बनाना है जो न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी उत्कृष्टता के लिए पहचाना जाए।

आर्थिक सहायता की व्यवस्था: आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली छात्रों के लिए विशेष छात्रवृत्ति, भोजन, आवास और डिजिटल संसाधनों की व्यवस्था की जाएगी।

प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक का रोडमैप: स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय तीनों स्तर पर समर्पित संस्थान स्थापित करने की योजना बनाई गई, ताकि शिक्षा की निरंतरता बनी रहे।

डॉ. गिरिराज गढ़ेवाल ने कहा कि यह सिर्फ एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह विश्वविद्यालय अंबेडकरवादी सोच को आगे बढ़ाएगा — जहां शिक्षा केवल डिग्री नहीं बल्कि सामाजिक न्याय, समता और आत्मनिर्भरता का माध्यम होगी।

समाज की एकजुटता दिखी

बैठक में उपस्थित समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने इस परिकल्पना का समर्थन किया और इसे साकार करने के लिए सहयोग देने का संकल्प लिया। युवाओं ने भी इस दिशा में तकनीकी सहायता, प्लानिंग और प्रचार की जिम्मेदारी निभाने की इच्छा जताई।
यह पहल न केवल सूर्यवंशी समाज के लिए गौरव की बात है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक प्रेरणास्पद उदाहरण बन सकती है। जब समाज खुद आगे बढ़कर शिक्षा की मशाल उठाता है, तभी सच्चे अर्थों में बदलाव की शुरुआत होती है।

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