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यही है प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार का सच: या सिरगिट्टी में एक संदिग्ध नेटवर्क?

**यही है प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार का सच: या सिरगिट्टी में एक संदिग्ध नेटवर्क?

**बिलासपुर, 6 जून 2025।**
गोविंद नगर, सिरगिट्टी क्षेत्र के खाली प्लाटों और किराए के मकानों में प्रतिदिन सुबह 7 से 8 बजे के बीच एक अजीब सा मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में युवक-युवतियाँ जुटते हैं। ये कोई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र नहीं, बल्कि स्वयं को “डिस्ट्रीब्यूटर” कहने वाले युवा हैं, जो 300 से अधिक प्रकार के ऑनलाइन-ऑफलाइन उत्पाद बेचने का दावा करते हैं।

जब संवाददाता ने इन युवाओं से बातचीत करने की कोशिश की तो उनमें से अधिकतर बिना कुछ कहे अपने-अपने कमरों में लौट गए। उनके स्थान पर कुछ मजबूत कद-काठी वाले युवक सामने आए जो गोलमोल जवाब देने लगे — “कंपनी है”, “हम डिस्ट्रीब्यूटर हैं”, “सब काम ऐप से होता है”, “कमाई बहुत अच्छी है”, “खर्चा मिल-बांट कर चलाते हैं”, और “खाना खुद बनाते हैं।”

यह नेटवर्क केवल बिलासपुर तक सीमित नहीं है। इनमें सरगुजा, अंबिकापुर, बलरामपुर, कोरिया, बलौदा बाजार जैसे सुदूर ग्रामीण जिलों से आए युवक-युवतियां शामिल हैं। जब इनकी पहचान जानने की कोशिश की गई तो दो नाम सामने आए — *लीड विज़न* और *गैल्वे कार्ट*। बताया गया कि केवल आधार कार्ड देकर कोई भी “डिस्ट्रीब्यूटर” बन सकता है।

गोविंद नगर, कंचन विहार आदि क्षेत्रों में 40-50 युवाओं से भरे मकानों को अघोषित लॉज या हॉस्टल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ युवतियों के साथ छोटे बच्चे भी रहते हैं। सवाल उठता है — क्या इन बाहरी युवाओं का पुलिस वेरिफिकेशन हुआ है? क्या इनके आपराधिक रिकॉर्ड की जांच हुई है?

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि इन युवाओं को स्थानीय नेताओं या पार्षदों का संरक्षण प्राप्त है। कुछ समय पहले इसी समूह के युवाओं द्वारा एक युवती से मारपीट की घटना भी सामने आई थी। यदि ये लोग सचमुच डोर-टू-डोर मार्केटिंग करते हैं, तो फिर यह बाजारों में या मोहल्लों में क्यों नहीं दिखते? अगर सारा काम ऑनलाइन है, तो बिलासपुर में टिके रहने की क्या आवश्यकता है?

स्थानीय नागरिकों का यह भी कहना है कि इन युवाओं से राजनीतिक रैलियों, आंदोलनों में भीड़ जुटाने के लिए काम लिया जाता है। साथ ही कई बार ये अवैध गतिविधियों और झगड़ों में भी शामिल पाए जाते हैं।

विश्वसनीय सूत्रों की माने तो इन्हीं में से कुछ युवा रात के समय नशा करके शहर के अलग-अलग क्षेत्र में घूमा करते हैं किसी से थोड़ी सी भी बहस हुई तो मारपीट पर उतारू हो जाते हैं इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिन मकान मालिकों द्वारा इन्हें रखा गया है वह इन्हें अवैध गतिविधियों में इस्तेमाल कर  तुरंत यहां से रफू चक्कर कर देते हैं

नगर निगम के ज़ोन कमिश्नर से जब इस संदिग्ध गतिविधि के संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “मुझे इस बारे में जानकारी नहीं थी। अगर एक मकान में इतने लोग रह रहे हैं तो उन्हें लॉज या हॉस्टल का लाइसेंस लेना चाहिए। मैं जांच कराऊंगा और आवश्यक कार्रवाई भी की जाएगी।”

यह पूरा मामला केवल रोजगार के नाम पर युवाओं के शोषण का प्रतीक नहीं, बल्कि एक बड़े नेटवर्क की ओर संकेत करता है जो कानून, प्रशासन और समाज – तीनों के लिए गंभीर चुनौती बन सकता है।

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