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एफआईआर में देरी, जांच में लापरवाही: क्या पुलिस पर किसी का दबाव है या यही है उनकी आदत? गिरीश पांडे

**एफआईआर में देरी, जांच में लापरवाही: क्या पुलिस पर किसी का दबाव है या यही है उनकी आदत?**

बिलासपुर, 22 मई 2025।**

तारबाहर थाना क्षेत्र के पुराने बस स्टैंड मार्ग पर हुई एक चोरी की घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। फरियादी गिरीश पांडे के अनुसार, उनके घर 7 जनवरी 2024 को चोरी हुई। उन्होंने उसी दिन थाना तारबाहर में लिखित शिकायत दी, लेकिन एफआईआर दर्ज हुई चार दिन बाद, 11 जनवरी को — वो भी अज्ञात चोरों के खिलाफ।

मामले की जांच में भी लापरवाही साफ नजर आई। गिरीश पांडे ने मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि मैं खुद आसपास के सीसीटीवी कैमरों की जांच की और पाया कि राजा होटल के कैमरे में पूरी घटना कैद हुई है। कैमरे में श्याम कश्यप और शिशिर कश्यप को घर से सामान उठाकर ले जाते और सड़क पर फेंकते देखा गया। लेकिन होटल मालिकों ने मुझे सीसीटीवी फुटेज देने से मना कर दिया क्योंकि यह काम पुलिस का है आगे गिरीश पांडे ने बताया कि श्याम कश्यप के नाम पर पूर्व में भी अपराध दर्ज है,

फरियादी ने चार-पांच गवाह भी इकट्ठा किए, लेकिन पुलिस ने मात्र दो गवाहों के बयान दर्ज किए — वो भी घटना के लगभग 12 महीने बाद, 21 दिसंबर 2024 को। उसी दिन थाना प्रभारी ने गिरीश पांडे को पत्र जारी कर कहा कि अगर उनके पास कोई साक्ष्य, सबूत या कैमरा फुटेज हो तो प्रस्तुत करें।

यहां सवाल यह उठता है कि कैमरा फुटेज इकट्ठा करना किसकी जिम्मेदारी थी? कानूनन यह पुलिस का कार्य है। राजा होटल के कैमरे में रिकॉर्डिंग उपलब्ध होने की बात सामने आने के बावजूद पुलिस ने समय रहते फुटेज नहीं ली, जिससे वह अब संभवतः उपलब्ध नहीं है।

गवाहों ने साफ तौर पर श्याम कश्यप, शिशिर कश्यप और तीन-चार अन्य व्यक्तियों को सुबह के समय मकान में घुसते देखा था। इनमें से श्याम कश्यप का राजनीतिक संबंध सामने आना जांच की निष्पक्षता पर और भी प्रश्नचिह्न लगाता है। बताया जा रहा है कि वह पूर्व में निगम चुनाव भी लड़ चुका है।

गिरीश पांडे ने एफआईआर दर्ज होने के बाद बिलासपुर के पुलिस अधीक्षक और जोन के आईजी तक लिखित शिकायत की, लेकिन अब तक मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

इस पूरे घटनाक्रम से प्रतीत होता है कि पुलिस की मंशा पहले फुटेज नष्ट होने देना, फिर गवाहों को कमजोर करना और अंततः शिकायतकर्ता को ही संदेह के घेरे में लाना रही है।

अब देखना यह है कि पुलिस महकमा इस मामले में निष्पक्ष जांच करता है या फिर राजनीतिक दबाव के आगे एक और आम नागरिक को न्याय के लिए भटकने को मजबूर करता है।

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